अर्कटिक गर्म हो रहा है और इसके कारण अर्कटिक ग्राउंड स्क्विरल का हाइबरनेशन प्रक्रिया में बदलाव आ रहा है। ये स्क्विरल हाइबरनेशन के दौरान अपने शरीर को जमने से बचाने के लिए अपनी मोटापे से गर्मी पैदा करते हैं। परंतु, परमाणु की मृदा में जमने में देरी होने से, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है।
साथ ही, पिछले 25 सालों में, महिला स्क्विरल हाइबरनेशन समाप्त करके पहले निकलती हैं, पुरुष स्क्विरल की तुलना में। यह इसलिए होता है क्योंकि महिला स्क्विरल को अपने बच्चों का ख्याल रखना होता है, जबकि पुरुष स्क्विरल को नहीं। इससे महिला स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान कम मोटापा खर्च करना पड़ता है, और वे जल्दी ही भोजन की तलाश में निकलती हैं।
यह प्रक्रिया में बदलाव, पर्यावरण के साथ-साथ, स्क्विरल के प्रजनन, सेहत, और प्रतिस्पर्धी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है।
हाइबरनेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ प्राणियों का शरीर और मन गहरी नींद में चला जाता है। हाइबरनेशन में प्राणियों का शरीर तापमान, सांस, और हृदय गति कम हो जाती है। हाइबरनेशन से प्राणियों को सर्दी से बचाव मिलता है, और उन्हें खाने की कमी के मौसम में भोजन की कम आवश्यकता होती है।
हाइबरनेशन मुख्यत: सर्दी के महीनों में होता है। हाइबरनेशन के लिए प्राणियों को पहले से ही पर्याप्त ऊर्जा संचित करना पड़ता है, जो उनके निष्क्रिय अवधि के दौरान काम आती है। कुछ प्राणियों को हाइबरनेशन के दौरान अपने बच्चों को जन्म देना होता है, जो वे हाइबरनेशन के बाद या उससे पहले करते हैं।
यह इस तरह समझाया जा सकता है कि जब परमाणु की मृदा जल्दी जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए अपने मोटापे से गर्मी पैदा करना पड़ता है। लेकिन, जब परमाणु की मृदा देर से जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है।
उदाहरण के लिए, मानिए कि स्क्विरल को हाइबरनेशन में 1000 कैलोरी की ज़रुरत है। अगर परमाणु की मृदा 10 सितंबर को ही जम जाए, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा। लेकिन, अगर परमाणु की मृदा 20 सितंबर को जमे, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से 20 सितंबर तक केवल 500 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा, और 20 सितंबर के बाद ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा।
इससे स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान अपने मोटापे को अधिक समय तक बचा सकता है, और वह जल्दी ही भोजन की तलाश में नहीं निकलना पड़ता है।
परमाणु की मृदा वह मृदा है जिसमें परमाणु अथवा अणु विखंडन होता है। परमाणु अथवा अणु विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा कहते हैं। परमाणु की मृदा को अंग्रेजी में परमाणु की मृदा (nuclear soil) कहते हैं।
परमाणु की मृदा में परमाणु विखंडन के कारण, उसका तापमान बहुत ऊंचा होता है। इसलिए, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान परमाणु की मृदा से गर्मी मिलती है, और उन्हें अपने मोटापे से ज़्यादा गर्मी पैदा करने की ज़रुरत नहीं होती है।
परमाणु की मृदा का उदाहरण है परमाणु भट्टी, जिसमें भारी धातु (पारा, प्लुटेनियम आदि) के टुकड़े रख देने के बाद, वे रेडियो सक्रिय हो जाते हैं, और परमाणु विखंडन होता है। परमाणु भट्टी से परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जाती है, जो कि विद्युत, गर्मी, और अन्य कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है।
लोहे की किलेबंदी: फायदे, नुकसान और सावधानियां
लोहे की किलेबंदी (iron fortification) का मतलब है खाद्य पदार्थों में लोहा या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ना, ताकि इनकी कमी से होने वाले रोगों से बचा जा सके। इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और कुपोषण की समस्या का समाधान होता है। उदाहरण के लिए, नमक में आयोडीन, आटे में फोलिक एसिड, दूध में विटामिन A और D, चावल में विटामिन B12 आदि को मिलाना। लोहे की किलेबंदी से हमें कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं, जैसे कि: • ऊर्जात्मक बनाए रखता है - आयरन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने और ऊर्जा बनाने का काम करता है। इससे थकान, कमजोरी और चिड़चिड़ापन कम होता है। • भूख में सुधार करता है - आयरन सप्लीमेंट्स का सेवन करने से भूख में वृद्धि होती है और शारीरिक विकास में सहायता मिलती है। • एनीमिया से बचाता है - आयरन हीमोग्लोबिन प्रोटीन का हिस्सा होता है, जो रक्त में पाया जाता है। हीमोग्लोबिन की कमी से एनीमिया होता है, जिसमें रक्त में ऑक्सीजन की कमी होती है। इससे चमड़ी, नाखून और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। आयरन के सेवन से एनीमिया को रोका जा सकता है। • प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है - आयरन प्रतिरक्षा प्रणाली के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, जो संक्रामक रोगों से लड़ने में मदद करता है। आयरन की कमी से प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है। • मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है - आयरन मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, जो स्मरण, सीखने, संवेदनात्मकता, मनोरंजन, मूड, और सुस्ताने में भूमिका निभाते हैं। आयरन की कमी से इन कार्यों में बाधा आती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। आयरन के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। लोहे की किलेबंदी करने के लिए FSSAI ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (फोर्टिफिकेशन ऑफ फूड्स) रेगुलेशन्स, 2018 में कुछ मानक निर्धारित किए हैं। इनमें से कुछ हैं: • गेहूं, मक्का और चावल के आटे में लोहा का स्तर 14.0-21.5 मिलीग्राम/किलोग्राम होना चाहिए। • दूध में लोहा का स्तर 0.5-1.0 मिलीग्राम/लीटर होना चाहिए। • नमक में लोहा का स्तर 850-1100 पीपीएम होना चाहिए। • तेल में लोहा का स्तर 0.5-1.0 मिलीग्राम/किलोग्राम होना चाहिए।लोहे की किलेबंदी के अलावा और कौन-कौन से तरीके हैं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के? इसका जवाब है: • पूरकता - इसमें आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन ए और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के सप्लीमेंट्स का सेवन किया जाता है। यह मुख्य रूप से गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और 6-59 महीने के बच्चों के लिए प्रभावी होता है। • डायटरी डायवर्सिटी - इसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है, जैसे कि फल, सब्जियां, जानवरों के उत्पाद, अंकुरित अनाज और दालें। यह एक स्थायी और स्वाभाविक तरीका है सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का। • होम गार्डनिंग - इसमें स्थानीय स्तर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध पौधों की खेती की जाती है, जैसे कि मोरिंगा, पालक, मेथी, गाजर, आलू, मटर, चुकंदर, आदि। यह सस्ता, सुलभ और समुचित पोषण प्रदान करने का एक प्रभावी माध्यम है। लोहे की किलेबंदी से होने वाले कुछ संभावित दुष्प्रभाव हैं: • पेट और आंतों की समस्याएं - लोहे का सेवन पेट में जलन, उल्टी, दस्त, कब्ज, पेट में दर्द, सूजन और अल्सर का कारण बन सकता है। • लिवर और हृदय की हानि - लोहे का अत्यधिक सेवन लिवर में सूजन, सिरोसिस, हृदय में सूजन, हृदय घात, हाइपोटेंशन, मृत्यु का कारण बन सकता है। • संक्रमण - लोहे का अत्यधिक सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है और विभिन्न संक्रमणों के लिए अधिक संवेदनशील बना सकता है। • अन्य दुष्प्रभाव - लोहे का सेवन चक्कर, सिर दर्द, थकान, जलन, खुजली, त्वचा में पीलापन, आंखों में पीलापन, मुंह में सूखापन, मसूड़ों में सूजन, दांतों में कालापन, गुर्दे की पथरी, गुर्दे की कमी, मस्तिष्क की हानि, अस्थमा, संधि शोथ, रक्त में ग्लूकोज का स्तर कम होना, हॉर्मोनल असंतुलन, मूत्र में रक्त होना, प्रतिक्रियाशील प्रतिक्रियाएं, कोमा आदि का कारण बन सकते हैं।
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