आज की तारीख में हम क्लीन एनर्जी में फॉसिल ईंधन ऊर्जा की तुलना में ज्यादा निवेश कर रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि क्लीन एनर्जी से हम क्लाइमेट चेंज, हवा प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं को कम कर सकते हैं। फॉसिल ईंधन से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस और हवा प्रदूषण ने 2018 में $2.9 ट्रिलियन का स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान किया था। क्लीन एनर्जी से हम फॉसिल ईंधन के ऐसे नुकसान से बच सकते हैं।
क्लीन एनर्जी का एक और फायदा यह है कि यह सस्ता और उपलब्ध है। सोलर और विंड एनर्जी के दाम फॉसिल ईंधन से कम हो गए हैं। इंडिया में भी सोलर और विंड एनर्जी का उपयोग बढ़ रहा है। इंडिया ने सीओपी 21- पेरिस समिट पर दिए गए अपने वादे को पूरा कर लिया है और अब 40% अपनी पावर क्षमता को नॉन-फॉसिल ईंधन से प्राप्त कर रहा है। इंडिया ने यह भी घोषणा की है कि 2070 तक नेट जीरो एमिशन और 2030 तक 50% अपनी इलेक्ट्रिसिटी आवश्यकताओं को रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों से पूरा करेगा।
क्लीन एनर्जी के लिए ज्यादा इन्वेस्ट करना न सिर्फ इंडिया के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए फायदेमंद है। लेकिन इसके लिए हमें नए निवेशकों, नीतियों और तकनीकों की ज़रूरत है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के अनुसार, क्लीन एनर्जी इन्वेस्टमेंट को 2030 तक $4 ट्रिलियन तक पहुंचाना होगा अगर हम नेट जीरो एमिशन्स बाय 2050 स्केनेरियो को पूरा करना चाहते हैं।
• वैश्विक ऊर्जा निवेश 2022 में 8% बढ़कर USD 2.4 ट्रिलियन तक पहुंचेगा।
• क्लीन एनर्जी निवेश 2022 में USD 2 ट्रिलियन से ऊपर हो जाएगा।
• फॉसिल ईंधन निवेश 2022 में 2019 के स्तर से नीचे ही रहेगा।
• तेल और गैस उत्पादकों का नेट आय 2022 में USD 4 ट्रिलियन तक पहुंचेगा।
• विश्व ऊर्जा बिल 2022 में पहली बार USD 10 ट्रिलियन से ऊपर हो जाएगा।
• फॉसिल ईंधन अभी भी वैश्विक ऊर्जा उत्पादन का 80% से ज़्यादा हिस्सा है, लेकिन क्लीन एनर्जी स्रोतों का उपयोग बढ़ रहा है।
• रिन्यूएबल एनर्जी निवेश हर डॉलर पर फॉसिल ईंधन उद्योग से तीन गुना ज़्यादा नौकरियां बनाता है।
• जर्मनी और फ्रांस में रिन्यूएबल एनर्जी निवेश ने पांच वर्षीय अवधि में 178.2% रिटर्न दिए, जबकि फॉसिल ईंधन निवेश ने -20.7% रिटर्न दिए।
परमाणु की मृदा से स्क्विरल को कोई हानि होती है? - परमाणु की मृदा: स्क्विरल के लिए वरदान या अभिशाप?
अर्कटिक गर्म हो रहा है और इसके कारण अर्कटिक ग्राउंड स्क्विरल का हाइबरनेशन प्रक्रिया में बदलाव आ रहा है। ये स्क्विरल हाइबरनेशन के दौरान अपने शरीर को जमने से बचाने के लिए अपनी मोटापे से गर्मी पैदा करते हैं। परंतु, परमाणु की मृदा में जमने में देरी होने से, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है। साथ ही, पिछले 25 सालों में, महिला स्क्विरल हाइबरनेशन समाप्त करके पहले निकलती हैं, पुरुष स्क्विरल की तुलना में। यह इसलिए होता है क्योंकि महिला स्क्विरल को अपने बच्चों का ख्याल रखना होता है, जबकि पुरुष स्क्विरल को नहीं। इससे महिला स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान कम मोटापा खर्च करना पड़ता है, और वे जल्दी ही भोजन की तलाश में निकलती हैं। यह प्रक्रिया में बदलाव, पर्यावरण के साथ-साथ, स्क्विरल के प्रजनन, सेहत, और प्रतिस्पर्धी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है। हाइबरनेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ प्राणियों का शरीर और मन गहरी नींद में चला जाता है। हाइबरनेशन में प्राणियों का शरीर तापमान, सांस, और हृदय गति कम हो जाती है। हाइबरनेशन से प्राणियों को सर्दी से बचाव मिलता है, और उन्हें खाने की कमी के मौसम में भोजन की कम आवश्यकता होती है। हाइबरनेशन मुख्यत: सर्दी के महीनों में होता है। हाइबरनेशन के लिए प्राणियों को पहले से ही पर्याप्त ऊर्जा संचित करना पड़ता है, जो उनके निष्क्रिय अवधि के दौरान काम आती है। कुछ प्राणियों को हाइबरनेशन के दौरान अपने बच्चों को जन्म देना होता है, जो वे हाइबरनेशन के बाद या उससे पहले करते हैं। यह इस तरह समझाया जा सकता है कि जब परमाणु की मृदा जल्दी जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए अपने मोटापे से गर्मी पैदा करना पड़ता है। लेकिन, जब परमाणु की मृदा देर से जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है। उदाहरण के लिए, मानिए कि स्क्विरल को हाइबरनेशन में 1000 कैलोरी की ज़रुरत है। अगर परमाणु की मृदा 10 सितंबर को ही जम जाए, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा। लेकिन, अगर परमाणु की मृदा 20 सितंबर को जमे, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से 20 सितंबर तक केवल 500 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा, और 20 सितंबर के बाद ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा। इससे स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान अपने मोटापे को अधिक समय तक बचा सकता है, और वह जल्दी ही भोजन की तलाश में नहीं निकलना पड़ता है। परमाणु की मृदा वह मृदा है जिसमें परमाणु अथवा अणु विखंडन होता है। परमाणु अथवा अणु विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा कहते हैं। परमाणु की मृदा को अंग्रेजी में परमाणु की मृदा (nuclear soil) कहते हैं। परमाणु की मृदा में परमाणु विखंडन के कारण, उसका तापमान बहुत ऊंचा होता है। इसलिए, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान परमाणु की मृदा से गर्मी मिलती है, और उन्हें अपने मोटापे से ज़्यादा गर्मी पैदा करने की ज़रुरत नहीं होती है। परमाणु की मृदा का उदाहरण है परमाणु भट्टी, जिसमें भारी धातु (पारा, प्लुटेनियम आदि) के टुकड़े रख देने के बाद, वे रेडियो सक्रिय हो जाते हैं, और परमाणु विखंडन होता है। परमाणु भट्टी से परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जाती है, जो कि विद्युत, गर्मी, और अन्य कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है।
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