ये एक्सपोसेट मिशन भारत का पहला अंतरिक्ष दूरबीन है जो विश्व के सबसे उज्ज्वल एक्स-रे स्रोत की पोलराइजेशन का अध्ययन करेगा। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष में एक्स-रे किरणों के उत्पादन और प्रसारण के बारे में अधिक जानने का है। इसका महत्व आम लोगों के लिए ये है कि ये हमें अंतरिक्ष के विभिन्न तत्वों और गतिविधियों के बारे में नए ज्ञान और समझ प्रदान करेगा।
ये मिशन 2023 में पीएसएलवी द्वारा पृथ्वी के निम्न कक्ष कक्ष में भेजा जायेगा और कम से कम पांच साल तक चलेगा। इसमें दो मुख्य उपकरण होंगे - पोलारीमीटर इंस्ट्रुमेंट इन एक्स-रे (पॉलिक्स) और एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी एंड टाइमिंग (एक्स्पेक्ट)। पॉलिक्स रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित किया गया है और ये 8-30 केवी शक्ति सीमा में एक्स-रे स्रोत की पोलराइजेशन का मापन करेगा। एक्स्पेक्ट इसरो द्वारा विकसित किया गया है और ये 1-15 केवी शक्ति सीमा में एक्स-रे स्रोत का विश्लेषण और समय निरूपण करेगा।
ये मिशन एक तरह का दूरबीन है जो पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष में घूमेगा और वहाँ से आने वाली एक्स-रे किरणों को पकड़ेगा। एक्स-रे किरणें वह होती हैं जो हमारी आँखों से नहीं दिखती हैं, परन्तु कुछ विशेष प्रकार के कैमरे से पकड़ी जा सकती हैं। ये किरणें हमें अंतरिक्ष के कुछ सबसे गर्म, चमकीले और रहस्यमय स्रोतों के बारे में बताती हैं, जैसे कि पल्सर, काले छिद्र, सक्रिय सितारों का केंद्र, आदि।
ये मिशन सिर्फ एक्स-रे किरणों को पकड़ने ही नहीं, बल्कि उनकी पोलराइजेशन (प्रकाश-प्रसार) का मापन (पोलारीमेट्री) करेगा। पोलराइजेशन मतलब होता है कि किसी प्रकाश किरण का हिलना (vibration) कौन सी समतल (plane) में होता है? पोलारीमेट्री से हमें पता चलता है कि प्रकाश का स्रोत कैसा है? उसका आकार, संरचना, प्रभाव आदि।
उदाहरण के लिए, अगर हम किसी सितारे से आने वाली पोलाराइज्ड प्रकाश किरण को देखें, तो हम अनुमान लगा सकते हैं कि उस सितारे के चारों ओर एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र है।
ये मिशन एक्स-रे की पोलराइजेशन को मापने के लिए दो उपकरणों का प्रयोग करेगा: पॉलिक्स और एक्स्पेक्ट। पॉलिक्स उच्च ऊर्जा (8-30 केवी) वाली एक्स-रे की पोलराइजेशन का मापन करेगा, जबकि एक्स्पेक्ट कम ऊर्जा (1-15 केवी) वाली एक्स-रे की पोलराइजेशन का मापन करेगा। दोनों ही उपकरण एक्स-रे की तीव्रता (intensity) और समय (timing) का मापन (measurement) करेंगे। ये मापन हमें समझने में मदद करेंगे कि अंतरिक्ष में एक्स-रे को पैदा (produce) और प्रसारित (scatter) करने वाले भौतिक प्रक्रिया (physical processes) और हालात (conditions) कैसे होते हैं।
ये मिशन भारत और पूरी दुनिया के लिए लाभकारी होगा, क्योंकि यह हमें ब्रह्मांड और उसके रहस्यों के बारे में नए संकेत और ज़्ञान प्रदान करेगा। यह हमारी स्थिति और प्रतिष्ठा को सुधारेगा अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में।
परमाणु की मृदा से स्क्विरल को कोई हानि होती है? - परमाणु की मृदा: स्क्विरल के लिए वरदान या अभिशाप?
अर्कटिक गर्म हो रहा है और इसके कारण अर्कटिक ग्राउंड स्क्विरल का हाइबरनेशन प्रक्रिया में बदलाव आ रहा है। ये स्क्विरल हाइबरनेशन के दौरान अपने शरीर को जमने से बचाने के लिए अपनी मोटापे से गर्मी पैदा करते हैं। परंतु, परमाणु की मृदा में जमने में देरी होने से, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है। साथ ही, पिछले 25 सालों में, महिला स्क्विरल हाइबरनेशन समाप्त करके पहले निकलती हैं, पुरुष स्क्विरल की तुलना में। यह इसलिए होता है क्योंकि महिला स्क्विरल को अपने बच्चों का ख्याल रखना होता है, जबकि पुरुष स्क्विरल को नहीं। इससे महिला स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान कम मोटापा खर्च करना पड़ता है, और वे जल्दी ही भोजन की तलाश में निकलती हैं। यह प्रक्रिया में बदलाव, पर्यावरण के साथ-साथ, स्क्विरल के प्रजनन, सेहत, और प्रतिस्पर्धी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है। हाइबरनेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ प्राणियों का शरीर और मन गहरी नींद में चला जाता है। हाइबरनेशन में प्राणियों का शरीर तापमान, सांस, और हृदय गति कम हो जाती है। हाइबरनेशन से प्राणियों को सर्दी से बचाव मिलता है, और उन्हें खाने की कमी के मौसम में भोजन की कम आवश्यकता होती है। हाइबरनेशन मुख्यत: सर्दी के महीनों में होता है। हाइबरनेशन के लिए प्राणियों को पहले से ही पर्याप्त ऊर्जा संचित करना पड़ता है, जो उनके निष्क्रिय अवधि के दौरान काम आती है। कुछ प्राणियों को हाइबरनेशन के दौरान अपने बच्चों को जन्म देना होता है, जो वे हाइबरनेशन के बाद या उससे पहले करते हैं। यह इस तरह समझाया जा सकता है कि जब परमाणु की मृदा जल्दी जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए अपने मोटापे से गर्मी पैदा करना पड़ता है। लेकिन, जब परमाणु की मृदा देर से जमती है, तो स्क्विरल को अपने शरीर को गर्म रखने के लिए गर्मी पैदा करने में भी देरी होती है। उदाहरण के लिए, मानिए कि स्क्विरल को हाइबरनेशन में 1000 कैलोरी की ज़रुरत है। अगर परमाणु की मृदा 10 सितंबर को ही जम जाए, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा। लेकिन, अगर परमाणु की मृदा 20 सितंबर को जमे, तो स्क्विरल को 10 सितंबर से 20 सितंबर तक केवल 500 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा, और 20 सितंबर के बाद ही 1000 कैलोरी प्रति-दिन ख़र्च करना पड़ेगा। इससे स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान अपने मोटापे को अधिक समय तक बचा सकता है, और वह जल्दी ही भोजन की तलाश में नहीं निकलना पड़ता है। परमाणु की मृदा वह मृदा है जिसमें परमाणु अथवा अणु विखंडन होता है। परमाणु अथवा अणु विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा कहते हैं। परमाणु की मृदा को अंग्रेजी में परमाणु की मृदा (nuclear soil) कहते हैं। परमाणु की मृदा में परमाणु विखंडन के कारण, उसका तापमान बहुत ऊंचा होता है। इसलिए, स्क्विरल को हाइबरनेशन के दौरान परमाणु की मृदा से गर्मी मिलती है, और उन्हें अपने मोटापे से ज़्यादा गर्मी पैदा करने की ज़रुरत नहीं होती है। परमाणु की मृदा का उदाहरण है परमाणु भट्टी, जिसमें भारी धातु (पारा, प्लुटेनियम आदि) के टुकड़े रख देने के बाद, वे रेडियो सक्रिय हो जाते हैं, और परमाणु विखंडन होता है। परमाणु भट्टी से परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जाती है, जो कि विद्युत, गर्मी, और अन्य कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है।
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