लोहे की किलेबंदी: फायदे, नुकसान और सावधानियां

लोहे की किलेबंदी (iron fortification) का मतलब है खाद्य पदार्थों में लोहा या अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ना, ताकि इनकी कमी से होने वाले रोगों से बचा जा सके। इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है और कुपोषण की समस्या का समाधान होता है। उदाहरण के लिए, नमक में आयोडीन, आटे में फोलिक एसिड, दूध में विटामिन A और D, चावल में विटामिन B12 आदि को मिलाना।
लोहे की किलेबंदी से हमें कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं, जैसे कि:
• ऊर्जात्मक बनाए रखता है - आयरन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने और ऊर्जा बनाने का काम करता है। इससे थकान, कमजोरी और चिड़चिड़ापन कम होता है।
• भूख में सुधार करता है - आयरन सप्लीमेंट्स का सेवन करने से भूख में वृद्धि होती है और शारीरिक विकास में सहायता मिलती है।
• एनीमिया से बचाता है - आयरन हीमोग्लोबिन प्रोटीन का हिस्सा होता है, जो रक्त में पाया जाता है। हीमोग्लोबिन की कमी से एनीमिया होता है, जिसमें रक्त में ऑक्सीजन की कमी होती है। इससे चमड़ी, नाखून और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। आयरन के सेवन से एनीमिया को रोका जा सकता है।
• प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है - आयरन प्रतिरक्षा प्रणाली के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, जो संक्रामक रोगों से लड़ने में मदद करता है। आयरन की कमी से प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है।
• मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है - आयरन मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, जो स्मरण, सीखने, संवेदनात्मकता, मनोरंजन, मूड, और सुस्ताने में भूमिका निभाते हैं। आयरन की कमी से इन कार्यों में बाधा आती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। आयरन के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
लोहे की किलेबंदी करने के लिए FSSAI ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (फोर्टिफिकेशन ऑफ फूड्स) रेगुलेशन्स, 2018 में कुछ मानक निर्धारित किए हैं। इनमें से कुछ हैं:
• गेहूं, मक्का और चावल के आटे में लोहा का स्तर 14.0-21.5 मिलीग्राम/किलोग्राम होना चाहिए।
• दूध में लोहा का स्तर 0.5-1.0 मिलीग्राम/लीटर होना चाहिए।
• नमक में लोहा का स्तर 850-1100 पीपीएम होना चाहिए।
• तेल में लोहा का स्तर 0.5-1.0 मिलीग्राम/किलोग्राम होना चाहिए।
लोहे की किलेबंदी के अलावा और कौन-कौन से तरीके हैं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के? इसका जवाब है:
• पूरकता - इसमें आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन ए और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के सप्लीमेंट्स का सेवन किया जाता है। यह मुख्य रूप से गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और 6-59 महीने के बच्चों के लिए प्रभावी होता है।
• डायटरी डायवर्सिटी - इसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है, जैसे कि फल, सब्जियां, जानवरों के उत्पाद, अंकुरित अनाज और दालें। यह एक स्थायी और स्वाभाविक तरीका है सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का।
• होम गार्डनिंग - इसमें स्थानीय स्तर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध पौधों की खेती की जाती है, जैसे कि मोरिंगा, पालक, मेथी, गाजर, आलू, मटर, चुकंदर, आदि। यह सस्ता, सुलभ और समुचित पोषण प्रदान करने का एक प्रभावी माध्यम है।
लोहे की किलेबंदी से होने वाले कुछ संभावित दुष्प्रभाव हैं:
• पेट और आंतों की समस्याएं - लोहे का सेवन पेट में जलन, उल्टी, दस्त, कब्ज, पेट में दर्द, सूजन और अल्सर का कारण बन सकता है।
• लिवर और हृदय की हानि - लोहे का अत्यधिक सेवन लिवर में सूजन, सिरोसिस, हृदय में सूजन, हृदय घात, हाइपोटेंशन, मृत्यु का कारण बन सकता है।
• संक्रमण - लोहे का अत्यधिक सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है और विभिन्न संक्रमणों के लिए अधिक संवेदनशील बना सकता है।
• अन्य दुष्प्रभाव - लोहे का सेवन चक्कर, सिर दर्द, थकान, जलन, खुजली, त्वचा में पीलापन, आंखों में पीलापन, मुंह में सूखापन, मसूड़ों में सूजन, दांतों में कालापन, गुर्दे की पथरी, गुर्दे की कमी, मस्तिष्क की हानि, अस्थमा, संधि शोथ, रक्त में ग्लूकोज का स्तर कम होना, हॉर्मोनल असंतुलन, मूत्र में रक्त होना, प्रतिक्रियाशील प्रतिक्रियाएं, कोमा आदि का कारण बन सकते हैं।

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